वांछित मन्त्र चुनें

याभि॑र्नरा श॒यवे॒ याभि॒रत्र॑ये॒ याभि॑: पु॒रा मन॑वे गा॒तुमी॒षथु॑:। याभि॒: शारी॒राज॑तं॒ स्यूम॑रश्मये॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yābhir narā śayave yābhir atraye yābhiḥ purā manave gātum īṣathuḥ | yābhiḥ śārīr ājataṁ syūmaraśmaye tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याभिः॑। न॒रा॒। श॒यवे॑। याभिः॑। अत्र॑ये। याभिः॑। पु॒रा। मन॑वे। गा॒तुम्। ई॒षथुः॑। याभिः॑। शारीः॑। आज॑तम्। स्यूम॑ऽरश्मये। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.१६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:112» मन्त्र:16 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:36» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:16


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक और उपदेशकों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरा) उत्तम कार्य्य में प्रवृत्ति करानेवाले (अश्विना) सब विद्याओं के पढ़ाने और उपदेश करनेवाले विद्वान् लोगो ! तुम दोनों (पुरा) प्रथम (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षाओं से (शयवे) सुख से शयन करनेवाले को शान्ति वा (याभिः) जिन रक्षाओं से (अत्रये) शरीर, मन, वाणी के दोषों से रहित पुरुष के लिये सब सुख और (याभिः) जिन रक्षाओं से (मनवे) मननशील पुरुष के लिये (गातुम्) पृथिवी वा उत्तम वाणी को (ईषथुः) प्राप्त कराने की इच्छा करो वा (याभिः) जिन रक्षाओं से (स्यूमरश्मये) सूर्यवत् संयुक्त न्याय प्रकाश करनेवाले पुरुष के लिये सुख की इच्छा करो वा जिनसे शत्रुओं को (शारीः) वाणी की गतियों को (आजतम्) प्राप्त कराओ (ताभिरु) उन्हीं रक्षाओं से अपनी सेनाओं की रक्षा के लिये (सु, आ, गतम्) अच्छे प्रकार उत्साह को प्राप्त हूजिये ॥ १६ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेष्टाओं को यह योग्य है कि विद्या और धर्म के उपदेश से सब जनों को विद्वान् धार्मिक करके पुरुषार्थयुक्त निरन्तर किया करें ॥ १६ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकोपदेशकाभ्यां किं कर्त्तव्यमित्याह।

अन्वय:

हे नराऽश्विनाध्यापकोपदेशकौ विद्वांसौ युवां पुरा याभिरूतिभिः शयवे शान्तिर्याभिरत्रये सर्वाणि सुखानि याभिर्मनवे गातुं चेषथुः। याभिः स्यूमरश्मये न्यायकारिणे चेषथुर्याभिः शत्रुभ्यः शारीराजतं ताभिरु स्वसेनारक्षायै स्वागतम् ॥ १६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (याभिः) (नरा) नयनकर्त्तारो (शयवे) सुखेन शयनशीलाय (याभिः) (अत्रये) अविद्यमाना आत्मिकवाचिकशारीरिकदोषा यस्मिंस्तस्मै (याभिः) (पुरा) पूर्वम् (मनवे) धार्मिकप्रजापतये राज्ञे। प्रजापतिर्वै मनुः। श० ६। ४। ३। १९। (गातुम्) पृथिवीम्। गातुरिति पृथिवीना०। निघं० १। १। गातुमिति वाङ्ना०। निघं० १। ११। (ईषथुः) प्रापयितुमिच्छतम् (याभिः) (शारीः) शराणामिमागतीः (आजतम्) जानीतम् (स्यूमरश्मये) स्यूमाः संयुक्तरश्मयो न्यायदीप्तयो यस्य तस्मै (ताभिः०) इत्यादि पूर्ववत् ॥ १६ ॥
भावार्थभाषाः - अध्यापकोपदेशकयोरिदं योग्यमस्ति विद्याधर्मोपदेशेन सर्वान् जनान् विदुषो धार्मिकान् संपाद्य पुरुषार्थिनः सततं कुर्य्याताम् ॥ १६ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अध्यापक व उपदेशक यांनी विद्या व धर्माच्या उपदेशाने सर्वांना विद्वान धार्मिक करून सदैव पुरुषार्थयुक्त करावे. ॥ १६ ॥